ग्रहशांति पूजा

व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में सुधार करने के लिए घर पर नवग्रह शांति पूजा की जाती है।
जब भी कोई धर्मकार्य करना निश्चित होता हे उसको नैमित्तिक कार्य कहते हे। जैसे की, गर्भ धारण , गोद भराई, संतान जन्म ,मुंडन ,जनेऊ ,शादी का प्रसंग आये तब धार्मिक विधि करनी होती हे उसको नैमित्तिक कार्य कहते हे।
ऐसे नैमित्तिक कार्यो में ग्रहशांति करवानी अति आवश्यक है।
तदुपरांत वास्तुशांति, ख़राब योग में जन्मे हुए बालक की शांति एवं आदि शांति कर्म में एवं नवचंडी ,विष्णुयाग,महशुद्धि ,आदि बड़े काम्य कर्मो में ग्रहशांति की जाती है।
ऐसे ग्रहशांति बहुत महत्वपूर्ण विधि है।

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Last updated Tue, 25-Aug-2020 Hindi-gujarati
पूजा के लाभ
  • व्यक्ति के सभी ग्रह दोषों या नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर भगाने में मदद करता है
  • नौकरी, करियर और जीवन में आ रही सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती है।
  • इस पूजा के प्रभाव से आपके जितने भी रुके हुए काम हैं वो पूरे हो जाते हैं। शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं।
  • शारीरिक और मानसिक चिंताएं दूर होती हैं।
  • आकर्षक व्यक्तित्व, भावनाओं पर उत्कृष्ट नियंत्रण, धन, प्रसिद्धि और जीवन में सफलता के लिए बेहद फायदेमंद है।
  • ज्ञान, व्यावसायिक सफलता और वृद्धि, धन और शरीर के कार्यों से संबंधित बीमारियों से राहत मिलती है।
  • दीर्घायु, उच्च शिक्षा और कौशल , धन और भाग्य, संतान संबंधी आशीर्वाद और धार्मिक प्रवृत्ति प्रदान करती हैं।

पूजाविधि के चरण
00:41:50 Hours
स्थापन
1 Lessons 00:08:22 Hours
  • सर्व प्रथम बाजोठ / चौकी लगाकर उसके ऊपर नवग्रह के नौ रंग के कपडे बिछाकर अथवा लाल कपडा बिछाकर उसके ऊपर नवग्रह की मूर्ति /फोटो / नवग्रह यन्त्र की स्थापना करे। दायी और गणपति जी की मूर्ति /फोटो रखे। बायीं और कुलदेवी की स्थापना करे। लक्ष्मी नारायण की फोटो या मूर्ति रखे। बाजू में भैरव जी या दत्तात्रेय की स्थापना करे। फिर सभी देवताओ को रोली,अक्षत ,अबीर,गुलाल, फूलो का हार चढ़ाना है। गणपतिजी के आगे जल से भरा हुआ कलश के ऊपर ५ पान के ऊपर श्रीफल रखना है। उसके आगे पाटला ऊपर कटोरी में नौ मेवा नौ फल , नौ मिठाई , पंचामृत, आरती की थाली एवं प्रसाद रखे। 00:08:22
  • अत्राद्य महामांगल्यफलप्रदमासोत्तमे मासे, अमुक मासे ,अमुक पक्षे,अमुक तिथौ , अमुक वासरे ,अमुक नक्षत्रे , ( जो भी संवत, महीना,पक्ष,तिथि वार ,नक्षत्र हो वही बोलना है )........ गोत्रोत्पन्न : ........... सपरिवारस्य सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थं, श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फल प्राप्तयर्थं, सकल मनोरथ सिध्यर्थ ग्रहशांति पूजन करिष्ये। 00:08:22

  • नवग्रह पूजनम् विधि मंत्र:-
    ईशान्यां चतुस्त्रिंशदङ्गुलोञ्चसमचतुरस्रस्य ग्रहपीठस्य समीपे सपत्नीको यजमानः उपविश्य आचमनं प्राणायामञ्च कुर्यात् ।
    ततो हस्ते जलं गृहीत्वा मया प्रारब्धस्य अमुककर्मणः साङ्गता सिद्धयर्थम् अस्मिन् नवग्रहपीठे
    अधिदेवताप्रत्यधिदेवतापञ्चलोकपालवास्तुक्षेत्रपालदशदिक्पालदेवतासहितानाम् आदित्यादिनवग्रहाणाम् तत्तन्मण्डले स्थापनप्रतिष्ठा पूजनानि करिष्ये।
    इति संकल्प्य ।
    वामहस्ते अक्षतान् गृहीत्वा दक्षहस्तेन तत्तत्स्थाने आदित्यादिदेवतानाम् आवाहनं कुर्यात् ।।
    (बायें हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ से प्रत्येक मन्त्र के बाद रेखाङ्कितग्रहों के स्थान पर अक्षत छोड़ें ।)

    सूर्य (मण्डल के मध्य में) —
    ॐ आकृष्णेनरजमा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यञ्च ।
    हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।
    जपा-कुसुम-संकाशं काश्यपेयं महाद्यूतिम्।
    तमोऽरिं पर्वपापघ्नं सूर्यमावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः कलिङ्गदेशोद्भव काश्वपसगोत्र रक्तवर्ण भो सूर्य : इहागच्छ इह तिष्ठ, सूर्याय नमः, सूर्यमावाहयामि स्थापयामि ।

    चन्द्र (अग्निकोण में) —
    ॐ इमं देवा ऽअसपत्क्न गुंग सुवद्ध्वं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय ।
    इमममुष्ष्य पुत्रममुख्यै व्विश ऽएष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां गुंग राजा |
    दधि-शंख-तुषाराभं क्षीरोदार्णवसम्भवम् ।
    ज्योत्स्नापतिं निशानाथं सोममावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनातीरोद्भव आत्रेयसगोत्र शुक्लवर्ण भो सोम इहा गच्छ इह तिष्ठ, सोमाय नमः सोममावाहयामि स्थापयामि ।

    भौम (दक्षिण में) —
    ॐ अग्निर्मूर्धा दिवः ककुत्पतिः पृथिव्या अयम् ।
    अपा गुंग रेता गुंग सि जिन्वति ।
    धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्तेजसम-प्रभम् ।
    कुमारं शक्तिहस्तं च भौममावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः अवन्तिकापुरोद्भव भरद्वाजसगोत्र रक्तवर्ण भो भौम इहागच्छ इह तिष्ठ भौमाय नमः, भौममावाहयामि स्थापयामि ।

    बुध (ईशान कोण में) —
    ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स गुंग सृजेथा मयं च ।
    अस्मिन्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत । ।
    प्रियङ्गुकलिकाभासं रूपेणाऽप्रतिमं बुधम् ।।
    सौम्यं सौम्यगुणोपेतं बुधमावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः मगधदेशोद्भव आत्रेयसगोत्र हरितवर्ण भो बुध इहागच्छ, इहतिष्ठ बुधायनमः, बुधमावाहयामि स्थापयामि ।

    बृहस्पतिम् (उत्तर मे) —
    ॐ बृहस्पते ऽअति यदर्यो ऽअर्हाद्युमद्विभाति क्क्रतु मज्जनेषु ।
    यद्दीदयच्छवस ऽऋतप्रजात तदस्ममासु द्रविणं धेहि चित्रम्।
    देवानां च मुनीनां च गुरुं काञ्चन सन्निभम् ।
    वन्द्यभूतं त्रिलोकानां गुरुमावाहयाम्य
    ॐ भूर्भुवः स्वः सिन्धुदेशोद्भव आङ्गिरसगोत्र पीतवर्ण भो बृहस्पते इहागच्छ इहतिष्ठ बृहस्पतये नमः, बृहस्पतिमावाहयामि स्थापयामि।

    शुक्र(पूर्व. में) —
    ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः ।
    ऋतेन सत्त्यमिन्द्रियं व्विपान गुंग शुक्क्रमन्धस ऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु ।।
    हिमकुन्द – मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् ।
    सर्वशास्त्रप्रवक्तारं शुक्रमावाहयाम्यहम् ॥
    ॐ भूर्भुवः स्वः भोजकटदेशोद्भव भार्गवसगोत्र शुक्लवर्ण भो शुक्र इहागच्छ इह तिष्ठ शुक्राय नमः, शुक्रमावाहयामि स्थापयामि ।

    शनि (पश्चिम में) —
    ॐ शं नो देवीरभिष्टय ऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्रवन्तु नः ।।
    नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् ।
    छाया मार्तण्डसम्भूतं शनिमावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः सौराष्ट्रदेशोद्भव काश्यपसगोत्र कृष्णवर्ण भो शनैश्चर इहागच्छ इहतिष्ठ शनैश्चरमावाहयामि स्थापयामि ।।

    राहु (नैर्ऋत्य कोण में) —
    ॐ कया नश्श्चित्र ऽआभुवदूती सदावृधः सखाकया शचिष्ठ्ठया वृता ।।
    अर्द्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम् ।
    सिंहिकागर्भसम्भूतं राहुमावाहयाम्यहम् ॥
    ॐ भूर्भुवः स्वः राठिनापुरोद्भव पैठिनसगोत्र कृष्णवर्ण भो राहो इहा गच्छ इह तिष्ठ राहवे नमः, राहुमावाहयामि स्थापयामि ।

    केतु (वायव्य कोण में) —
    ॐ केतुं कृण्ण्वन्नकेतवे पेशो मर्या ऽअपेशसे समुषद्भिरजायथाः ।।
    पलाशधूप्रसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम् ।
    रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं केतुमावाहयाम्यहम् ।।
    ॐ भूर्भुवः स्वः अन्तर्वेदिसमुद्भव जैमिनिसगोत्र कृष्णवर्ण भो केतो इहागच्छ इह तिष्ठ केतवे नमः, केतुमावाहयामि स्थापयामि ।।

    इति नवग्रह पूजनम्

    सूर्य ग्रह की शांति -
    १) ।। ॐ सूर्याय नमः।। (जप संख्या 7000 बार)
    आक की लकड़ी से ७०० बार मंत्र (७ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    चंद्र ग्रह की शांति -
    १) ।। ॐ सोमाय नम।। (जप संख्या ११०००० बार )
    पलास की समिधा से ११०० बार (११ माला) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    मंगल ग्रह की शांति -
    १) ॐ भौमाय नम:।। (जप संख्या १०००० बार )
    खेर की समिधा से १००० बार (१० माला) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    बुध ग्रह की शांति -
    १) ।। ॐ बुधाय नमः।। (जप संख्या ८००० बार )
    अपामार्ग की समिधा से ८०० बार (८ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    गुरु (वृहस्पति ) की शांति -
    १)।। ॐ गुरवे नम:।। (जप संख्या १९००० बार )
    पीपल की समिधा से १९० बार (१९ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    शुक्र ग्रह की शांति -
    १)।। ॐ शुक्राय नमः।। (जप संख्या १६००० बार )
    गूलर की समिधा से १६० बार (१६ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    शनि ग्रह की शांति -
    १)।। ॐ शनिश्चरायै नम:।। ( जप संख्या २३००० बार)
    शमी की समिधा से २३० बार (२३ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    राहू ग्रह की शांति -
    १)।। ॐ राहवे नम:।। (जप संख्या १८००० बार )
    दूर्वा की समिधा से १८० बार (१८ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    केतु ग्रह की शांति -
    १)।। ॐ केतवे नमः।। (जप संख्या १७००० बार )
    कुशा की समिधा से १७० बार (१७ माला ) ऊपर दिए गए मंत्र से आहुति दे। या ९ बार आहुति दे।

    इसके बाद ''अधिदेवता'' के नाम बोलकर ४ आहुति प्रत्येक नाम पर दे।
    १) ॐ ईश्वराय स्वाहा। (४ बार आहुति देनी हे)
    २) ॐ उमायै स्वाहा। ( ''' )
    ३) ॐ स्कंधायै स्वाहा। ( '' )
    ४) ॐ विष्णवे स्वाहा। ( '' )
    ५) ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। ( '' )
    ६) ॐ इन्द्राय स्वाहा। ( '' )
    ७) ॐ यमायै स्वाहा। ( '' )
    ८) ॐ कालायै स्वाहा। ( '' )
    ९) ॐ चित्रगुप्तायै स्वाहा। ( '' )
    १०)ॐ अनदधये स्वाहा। ( '' )

    उसके बाद ''प्रत्यादिदेव'' के नाम बोलकर प्रत्येक की ४ आहुति देनी हे।
    १) ॐ अग्नयै स्वाहा। (४ बार आहुति )
    २) ॐ अदध्यभ्य स्वाहा। ( '' )
    ३) ॐ पृथवी स्वाहा। ( '' )
    ४) ॐ नारायणाय स्वाहा। ( '' )
    ५) ॐ इन्द्रायै स्वाहा। ( '' )
    ६) ॐ इन्द्राण्यै स्वाहा। ( '' )
    ७) ॐ प्रजापतयै स्वाहा। ( '' )
    ८) ॐ अर्थेभ्यो स्वाहा। ( '' )
    ९) ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। ( '' )

    उसके बाद ''लोकपाल'' के नाम बोलकर प्रत्येक की २ आहुति देनी हे।
    १) ॐ गणपतये स्वाहा। (२ बार आहुति)
    २) ॐ दुर्गायै स्वाहा। ( '' )
    ३) ॐ वायव्ये स्वाहा। ( '' )
    ४) ॐ आकाशाय स्वाहा। ( '' )
    ५) ॐ अश्विभ्याम स्वाहा। ( '' )
    ६) ॐ वासस्तपातायै स्वाहा। ( '' )

    उसके बाद ''दिग्पाल'' के नाम बोलकर प्रत्येक की २ आहुति देनी हे।
    १) ॐ इन्द्रायै स्वाहा। (२ बार आहुति)
    २) ॐ अग्नयै स्वाहा। ( '' )
    ३) ॐ यमायै स्वाहा। ( '' )
    ४) ॐ नैऋत्यै स्वाहा। ( '' )
    ५) ॐ वरुणाय स्वाहा। ( '' )
    ६) ॐ वायव्ये स्वाहा। ( '' )
    ७) ॐ सोमाय स्वाहा। ( '' )
    ८) ॐ ईशानाय स्वाहा। ( '' )
    ९) ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। ( '' )
    १०)ॐ अनंताय स्वाहा। ( '' )

    पूर्णाहुति :-
    १ सुपारी को मौली से लपेटकर शुचिशर्वा के ऊपर रखे और शक्रादय स्तुति बोलकर (समय का आभाव हो तो शक्रादय स्तुति के ४ श्लोक बोलकर ) आहुति दे।

    नोंध :-
    कामना के अनुसार हवन की पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ, जौ, तिल आदि की आहुति दी जाती है।(पंडित से पूछ लीजिये )

    नैवेद्य
    १) सूर्य - गुड़ मिलाया हुआ भात
    २) चंद्र - खीर
    ३) मंगल - लापसी (गुड़ का बना मिठा दलिया)
    ४) बुध - साठी के चावल की खीर
    ५) गुरु - दही चावल
    ६) शुक्र - घी, भात
    ७) शनि - तिल मिश्रित भात
    ८) राहु - उड़द मिश्रित भात
    ९) केतु - सप्तधान्य की खिचड़ी

    इन भोज्य पदार्थों से ये भोग लगायें तथा ब्राह्मण को भोजन भी अवश्य खिलायें।

    इसके पश्चात ग्रहों की दक्षिणा भी बतायी गई है वह या फिर सबको मिलकर नगद नव ग्रहो के समान गिनकर दक्षिणा ब्राह्मण को देनी है।
    00:08:22
  • आरती श्री नवग्रहों की कीजै । बाध, कष्ट, रोग, हर लीजै ।।
    सूर्य तेज़ व्यापे जीवन भर । जाकी कृपा कबहुत नहिं छीजै ।।
    रुप चंद्र शीतलता लायें । शांति स्नेह सरस रसु भीजै ।।
    मंगल हरे अमंगल सारा । सौम्य सुधा रस अमृत पीजै ।।
    बुध सदा वैभव यश लाए । सुख सम्पति लक्ष्मी पसीजै ।।
    विद्या बुद्धि ज्ञान गुरु से ले लो । प्रगति सदा मानव पै रीझे।।
    शुक्र तर्क विज्ञान बढावै । देश धर्म सेवा यश लीजे ।।
    न्यायधीश शनि अति ज्यारे । जप तप श्रद्धा शनि को दीजै ।।
    राहु मन का भरम हरावे । साथ न कबहु कुकर्म न दीजै ।।
    स्वास्थ्य उत्तम केतु राखै । पराधीनता मनहित खीजै ।।
    00:08:22
  • श्रद्धा अनुसार नैवेद्य / नौ रंग की मिठाई 00:08:22
पूजन सामग्री
  • १)बाजोठ -२ नंग और २) पाटला -२ नंग
  • कपडा पीला /काला/लाल/नीला /हरा /र सफ़ेद -सवा मीटर
  • पंचपात्र (कटोरी)-तरभाणु(थाली)-आचमनी(चम्मच ) - ३ नंग सब
  • गणेश ,महादेव,नवदुर्गा,भैरव,लक्ष्मी नारायण की मूर्ति या फोटो, नवग्रह यन्त्र -१
  • श्री फल - १
  • कलश ( ताम्बा ) - १
  • जनेऊ -७ नंग
  • फूलो के हार - ५ और फूल अलग से /धरो -दूर्वा
  • कुमकुम ( रोली ) - १० ग्राम
  • चावल - १० ग्राम
  • अबीर -१० ग्राम
  • गुलाल - १० ग्राम
  • सिंदूर - १० ग्राम
  • लौंग -१० ग्राम
  • शहद - २५० ग्राम
  • शक्कर - २५० ग्राम
  • कच्चा दूध - १०० ग्राम
  • पंचामृत - दूध ,दही, घी, शहद,शक़्कर
  • गंगाजल और पानी - आवश्यकता अनुसार
  • नव फल - केले,अनार,चीकू,इत्यादि
  • इलायची -१० ग्राम
  • देशी घी -१ किलो
  • साबुत चावल.-१ किलो २५० ग्राम
  • नवमेवा - २५० ग्राम ( काजू,बादाम ,किशमिश,चिरौंजी,छुआरे,काजू , )
  • आसोपालव का तोरण - १
  • नाराछड़ी / मौली
  • सुपारी - ११
  • नवमिठाई - ५०० ग्राम
  • हवन सामग्री- १ किलो
  • जौ -२५० ग्राम
  • काले तिल - २५० ग्राम
  • आम के पत्ते - ११
  • आम की लकडियां - २ किलो
  • अखंड ज्योत के लिए दिया -१
  • धुप - अगरबत्ती -१ पैकेट
  • नैवेद्य - श्रद्धा अनुसार प्रसाद
वर्णन
जब मनुष्य की ग्रहदशा बिगड़ जाती है। तब मनुष्य चारो तरफ से घिर जाता है ,उसका हर काम बिगड़ जाता है। सम्बन्धी दूर हो जाते है 
वेपारी लोगो को धंधे में नुक्सान , शत्रु बढ़ जाते है।  तब करवाने से शान्ति  मिलती है , रस्ते खुल जाते है।
बिगड़े काम बनने लगते हे।  ग्रहशांति पूजा शादी से पहले भी की जाती  हे, जिससे शादी से पहले लड़का और लड़की के सारे दोष ख़त्म हो जाते हे और सुखमय दांपत्य जीवन का निर्वाह कर सकते हे।
 
नवग्रह की शांति इन पाँच चीजों पर टिकी हुई है जप,हवन, तर्पण, मार्जन और ब्राह्मण भोजन, यह शांति के 5 अंग माने जाते हैं 
 जप का दशांश हवन यानि ग्रहों के जप करने के बाद उसका हवन भी करना जरुरी है।
ठीक इसी प्रकार से  तर्पण का दशांश मार्जन और अंत में मार्जन का 10 अंश ब्राह्मण भोजन होता है